कव्हरगढ़़ में मौजूद है आल्हा-उदल के प्रमाण प्राकृतिक सौन्दर्य देख पर्यटकों का दिल हो जाता है, बाग-बाग,📱9827077973
कव्हरगढ़़ में मौजूद है आल्हा-उदल के प्रमाण
प्राकृतिक सौन्दर्य देख पर्यटकों का दिल हो जाता है, बाग-बाग
मतीन रजा,📱9827077973
लालबर्रा- घने जंगलों के भीतर ऊंची पहाड़ियों पर स्थित वीरान राजस्व ग्राम कव्हरगढ़ के वन्य क्षेत्र की प्रसिध्दि लंबे समय से आल्हा-उदल की रण किवदंतियों बल लोगों के मानस पटल पर आज भी विद्यमान है। ग्राम पंचायत रानीकुठार अंतर्गत ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से ढंके कव्हरगढ़ क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य ना सिर्फ देखने लायक है, बल्कि यहां पर जगह-जगह पर पंद्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल की पाषाण प्रतिमाओं के रूप में आल्हा-उदल की लड़ाईयों के चित्र विद्यमान है, एक ओर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित माता रानी बोबलाई देवी (माँ बम्लेश्वरी) का मंदिर है तो दूसरी ओर स्थित शीर्षस्थ पहाड़ी पर आल्हा-उदल का दरबार क्षेत्र, सोना रानी का पलंग, सीता की नहेरनी व हनुमान जी सहित अनेकानेक दर्शनीय स्थल सुशोभित है, मान्यता है कि किसी जमाने में आल्हा-उदल अपना दरबार इन्ही पहाड़ियों पर लगाया करते थे, यदि पुरातत्व विभाग इस ओर ध्यान दें तो इस पर्यटक स्थल को चार चांद लग सकते है, परंतु अब तक प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने कव्हरगढ़ क्षेत्र के विकास हेतु कोई ठोस कदम नही उठाये जिसके चलते पुरातत्व संपत्ति खतरे में नजर आ रही है। जिसका संरक्षण क्षेत्रीय ग्रामीणजन अपनी जवाबदारी समझकर कर आज भी कर रहे है”।
सांसद महोदय की रूची बाद बदलेंगा नजारा…
उल्लेखनीय हो कि लालबर्रा से महज दस किमी. दूर ग्राम पंचायत रानीकुठार की सीमा प्रारंभ हो जाती है, जहां से पश्चिम दिशा की ओर 3 किमी. चलने पर कव्हरगढ़ एवं बोबलाई देवी मंदिर का क्षेत्र शुरू हो जाता है। जिसे म.प्र.पुरातत्व एवं इतिहास शोध विभाग द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है, विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां की मूर्तियां पंद्रहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य की बताई गई है। यहां तक पर्यटक श्रध्दालु दुपहिया या चौपहिया वाहन से जा सकते है, आगे की चढ़ाई ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर पैदल ही तय करनी पड़ती है, पहले फाटक से लगभग 1 किमी. दूर दूसरे फाटक के नजदीक बोबलाई मंदिर का क्षेत्र प्रारंभ हो जाता है यहां पर विश्राम हेतु कुटिया एवं पेयजल हेतु कुंआ स्थित है, आसपास से घिरा हरा-भरा क्षेत्र देखकर पर्यटकों का दिल बाग-बाग हो जाता है, ऐसी मान्यता है कि आल्हा-उदल ने अपने राज्य से निकासी के पश्चात कनवजगढ़ में शरण ली थी जिसे बाद में कव्हरगढ़ कहा गया। इस क्षेत्र का भ्रमण मेला समिति अध्यक्ष दीलिप पन्द्रे व सचिव चिंतेश एड़े द्वारा प्रेस प्रतिनिधि मतीन रजा को करवाया तथा क्षेत्र से जुड़ी अनेको गाथाऐं बताई।
किंतु सदीयों से प्राकृतिक सौन्दर्य की झटा बीखर रहा कव्हरगढ़ क्षेत्र के कायाकल्प की ओर किसी भी जनप्रतिनिधि ने दिलचस्बी नही दिखाई वही हाल ही में बालाघाट-सिवनी सांसद डॉ.ढालसिंह बिसेन द्वारा उक्त मामले का प्रमुख्यता के साथ लोकसभा में उठाया क्या वाकई श्री बिसेन के आव्हान पर कव्हरगढ़ क्षेत्र का नजारा बदलेगा।
बोबलाई देवी करती है,सबकी मन्नत पूरी
बोबलाई माँ के दरबार के ठीक नीचे कुटिया एवं भांति-भांति के देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थित है। पंडा बिरनसिंह परते ने इस कुटिया का निर्माण किया था परंतु वर्तमान में पंडा सुनिल पन्द्रे अपनी सेवा दे रहे है, कुटिया के पास ही राधा-कृष्ण, भगवान विष्णु, भगवान शंकर, नंदी की पिंडी, आल्हा-उदल की प्रतिमा एवं सिंहवाहिनी की मूर्ति विराजित है। बांयी ओर पगडंडी पर चलते हुए 72 सीढियां चढ़ने पर माता रानी माँ बम्लेश्वरी के दर्शन सुलभ हो पाते है, इस ऊंचे स्थान से चारों ओर की प्राकृतिक छटा लोगों का बरबस ही मन मोह लेती है। सीढियों के मध्य दांयी ओर भगवान भैरवनाथ की मूर्ति स्थित है, माता रानी के दरबार तक पहुंचने के लिये चट्टानों से ढंकी एक सुरंग से जाना पड़ता है जिसके दांयी ओर एक सीधी खाई पड़ती है, बताया जाता है कि अधर्मी व्यक्ति इस सुरंग के पार नही जा सकते है, खड़ी पहाडियों के एक सिरे पर माता रानी का दरबार सजा मिलता है जिनके दर्शन कर व्यक्ति स्वयं को धन्य महसूस करता है। अष्टमी पर्व पर यहां जवारे बोये जाते है और भक्तजन नवरात्रि के पर्व पर माता रानी की पूजा अर्चना, भजन-कीर्तन, मंडली व जसगान करते है।
बावली का इतिहास-
तेज गर्मी में भी नही सूखता बावड़ी का पानी
माता रानी के दरबार के नीचे लगभग 200 मीटर पश्चिम दिशा में स्थित बावड़ी तेज गर्मी में भी जल से भरी रहती है, इसकी यही विशेषता इसे और भी खास बनाती है, माना गया है कि आल्हा-उदल के उपयोग हेतु शताब्दियों पूर्व इस बावड़ी का निर्माण किया गया था। अंग्रेजों के जमाने में इसे खाली करने का असफल प्रयास भी किया गया, इस बावड़ी में पानी लेने के लिये सीढियों से नीचे उतरना पड़ता है, बावड़ी में टूट-फूट के बाद जून 2004 में वन सुरक्षा समिति द्वारा इसका रखरखाव किया गया, बताया गया है कि शत्रुओं से बच निकलने हेतु बावड़ी के अंदर से ही एक गुप्त दरवाजा वाली सुरंग के जरिये अन्यत्र कहीं और खुलता है, इस बावड़ी की लंबाई 20 बाई 10 फीट है। बावड़ी के नजदीक ही एक ओर वन विभाग द्वारा कुंए की मरम्मत की गई है जिसकी खोज पुराने समय में पंडा लालसिंह मरकाम द्वारा की गई थी, पानी की सुलभता के चलते पिकनिक पर आने वाले पर्यटक इस स्थान पर अपना भोजन निर्मित करते है, एवं भोजन पश्चात कव्हरगढ़ के दर्शन हेतु प्रस्थान करते है।
दुर्गम है मॉ तक पहुंचने की राह
कव्हरगढ़ पहाड़ी की चढ़ाई इतनी कठिन है कि रास्ते में बार-बार कंठ सूख जाते है इसलिये बावड़ी या कुंए से पानी भरने के बाद लगभग 2000 मीटर की सीधी दुर्गम चढ़ाई प्रारंभ होती है। ऊबड़-खाबड़ झाड़ियों के बीच से दो चट्टानों के मध्य संकरी सी जगह से अनेकों बार गुजरना पड़ता है, रास्ते में दो सुरंग मिलती है जिसमें प्रथम सुरंग की लंबाई 50-60 फीट बताई गई है एवं दूसरी सुरंग की लंबाई लगभग 30 फीट है, सुरंग के पश्चात हनुमान जी के दर्शन होते है, रानीकुठार में कोई बजरंग मंदिर ना होने के कारण ग्रामीणजन इसी स्थान पर आकर हनुमान जी की पूजा अर्चना करते है। इस मूर्ति को अन्यत्र स्थापित करने का प्रयास भी किया गया परंतु संभव नही हो सका। यहीं पर तलघर का गेट भी स्थापित है, रामभक्त हनुमान जी के दर्शन के पश्चात ऊंची पहाडियों में ही खुले मैदान के दर्शन होते है जिसके बारे में बताया गया है, कि यह कचहरी क्षेत्र है जहां पर आल्हा-उदल अपना दरबार लगाकर लोगों की समस्याएं सुनते थे, यहीं पर भगवान शंकर सहित हाथी की आकृति वाली पाषाण शिला मौजूद है।
यह गाथा है सीता नाहेरनी व पलंग की
पहाड़ी के शीर्ष बिंदु से देखने पर आसपास के खेतों में चरने वाले मवेशी भी छोटे-छोटे जीव-जंतु की आकृति के दिखाई देते है, यहां से नगरीय क्षेत्र लालबर्रा का हर हिस्सा देखा जा सकता है। कचहरी चौक से आगे दो चट्टानों के मध्य माता सीता की नहेरनी स्थित है, इतनी ऊंचाई पर भी इस स्थान पर हमेशा पानी की उपलब्धता बनी रहती है, किवदंतियों के अनुसार सोना रानी के द्वारा इस नहेरनी के जल का उपयोग कपड़े धोने एवं स्नान आदि के लिये किया जाता था, यहीं पर दूसरी ओर एक बड़ी चट्टान मौजूद है जिसके एक ओर सोना रानी का पलंग है तो दूसरी ओर आल्हा-उदल का पलंग बना हुआ है। आज तक इस सुरंग की गहराई आंकी नही जा सकी, अनेकों लोगों ने अंदर जाने का प्रयास किया परंतु कुछ दूर जाकर भयभीत होकर लौट आये।
रानीकुठार में दो दिवसीय मेले का हुआ आगाज
इस ऐतिहासिक स्थल से लोगों को परिचित करवाने हेतु प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी अपने आयोजन के 44 वें वर्ष में प्रवेश करते हुए धार्मिक पर्यटक स्थल कव्हरगढ़ में माँ बम्लेश्वरी मेला महोत्सव समिति व जय हिन्द क्लब रानीकुठार के तत्वाधान एवं स्व.शंकरलाल गौतम की स्मृति में 15 फरवरी से दो दिवसीय मेले का आयोजन किया गया, जिसका शुुभारंभ 15 फरवरी को दोपहर 1 बजे किया गया। वही कार्यक्रम का समापन 16 फरवरी को लालबर्रा थाना प्रभारी अमित भावसार के मुख्य आतिथ्य, कार्यवाहक उपनिरीक्षक कलशराम उइके, भूतपूर्व सैनिक खुमानसिंह पटले व रोजगार सहायक इन्द्रकुमार गौतम के विशेष आतिथ्य एवं ग्राम प्रधान विनोद ठाकरे की अध्यक्षता में किया जायेगा। कार्यक्रम समापन प्श्चात क्षेत्रीयजनों व ग्रामीणों के मनोरंजन हेतु रात्रि 9 बजे से महिला एवं पुरूष दो शायरो के मध्य जंगी मुकाबले का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस अवसर पर अधिकाधिक संख्या में क्षेत्रीयजनों से उपस्थिति की अपील समिति अध्यक्ष दिलीप पन्द्रे, उपाध्यक्ष मुन्नालाल गौतम, कोषाध्यक्ष जयप्रकाश धुर्वे, सचिव चिंतेश एड़े, मंच संचालक दिनदयाल एड़े, अंतराम ठाकरे, संरक्षकगण ग्राम सरपंच विनोद ठाकरे, ग्राम विकास समिति अध्यक्ष रूपलाल एड़े, जल उपभोक्ता संथा रानीकुठार अध्यक्ष पन्नालाल गौतम, वन सुरक्षा समिति अध्यक्ष इन्द्रजीत उइके, पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र परिहार, प्रेस प्रतिनिधि मतीन रजा व रामप्रसाद पन्द्रे सहित समस्त ग्रामवासियों ने की है।
दो शायरो का जंगी मुकाबला आज
मेला व कबड्डी प्रतियोगिता में पहुंचे क्षेत्रीयजनों व ग्रामीणों के मनोरंजन हेतु 16 फरवरी को रात्रि 9 बजे से दो महिला शायरो के मध्य जंगी मुकाबले का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस अवसर पर अधिकाधिक संख्या में क्षेत्रीयजनों से उपस्थिति की अपील समिति अध्यक्ष दिलीप पन्द्रे, उपाध्यक्ष मुन्नालाल गौतम, कोषाध्यक्ष जयप्रकाश धुर्वे, सचिव चिंतेश एड़े, मंच संचालक दिनदयाल एड़े, अंतराम ठाकरे, संरक्षकगण ग्राम सरपंच विनोद ठाकरे, वन सुरक्षा समिति अध्यक्ष इन्द्रजीत उइके, पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र परिहार, जल उपभोक्ता संथा रानीकुठार पूर्व अध्यक्ष पन्नालाल गौतम, ग्राम विकास समिति अध्यक्ष रूपलाल एड़े, न्यूज रिपोर्टर मतीन रजा, रामप्रसाद पन्द्रे, इंजन धुर्वे, चिंतेश एड़े, सदस्य धनसिंह वाड़िवा, छबिन्द्र पन्द्रे, संतोष पन्द्रे, संतोष नागेश्वर, विनोद मड़ावी, देवेन्द्र उइके, सुरेश मड़ावी, संतलाल कोकोटे, राजेश बागड़े, गुसाई सैयाम, पूरनलाल मर्सकोले, उदलसिंह उइके, दिनेश गौतम, महेश गौतम, सुरेन्द्र एड़े, मूलचंद मोरध्वरे, सरोज तेकाम, सोहेल खान, भीवराम राणा, मिथलेश एड़े, उमनसिंह मड़ावी, महेन्द्र नागेश्वर, राजेश गौतम, तुकेन्द्र भगत, विरेन्द्र बोपचे, सुरजलाल उइके, सूरज कुमार उइके, कन्हैया उइके, रमेश उइके, कमलेश पन्द्रे सहित समस्त ग्रामवासियों ने की है।