अमन-बटोही
– मुकेश बोहरा अमन
घोर अंधेरे की पगडण्डी,
चलता है कोई रात-रात भर ।
आसमान के टिमटिम तारे ,
ओझल होते जाते सारे ।
एक अकेला तन्हां होकर,
चलता लेकिन किसे पुकारे ।।
हर ओर अंधेरा गहरा गहरा,
किससे पूछे, कहाँ किनारे ।
बहुत दूर है भोर सुहानी ,
चलता है कोई रात-रात भर ।।
हर चौराहे, हर नुक्कड पर,
असमंजस का ही आलम है ।
भीड़ जुटी हो चाहे कितनी,
तन्हाई का ही मौसम है ।
कौन बतायेगा सत का पथ,
‘मैं’ के भीतर गायब हम है ।
‘अमन’ आज भी वहीं बटोही ,
चलता है कोई रात-रात भर ।।
मुकेश बोहरा अमन
गीतकार
बाड़मेर राजस्थान