“वैवाहिक वर्षगाँठ का संवाद (लघुकथा)”


            आज वही दिन है जिसमें राधा और केशव परिणय बंधन में बंधे थे। जिंदगी कितने सारे परिवर्तनों की यात्रा से गुजरती रहती है। हर वैवाहिक वर्षगाँठ को मनाने का तरीका अलग-अलग था, पर आज केशव राधा से आने वाले जीवन को लेकर संवाद करना चाहता था। केशव राधा से बोला की आगे हम दोनों को एक लंबा सफर तय करना है। भूतकाल में हम दोनों ही अलग-अलग परिवेश और परिस्थितियों से गुजरे है। आने वाले समय में इस विवाह बंधन का उद्देश्य एक दूसरे के गुणों को जानकार उसके अनुरूप आगे बढ़ने को प्रेरित करना है और कमियों को जानते हुए डगमगाते हुए कदमों को सहयोग देना है। आगे की यात्रा में बहुत सारे परिवर्तन शामिल है। अब हमारा पुत्र कान्हा भी हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब हमें ज़िम्मेदारी की धुरी पर नाच नाचना होगा। हो सकता है उसमे मेरा तुम्हारे प्रति समय कुछ न्यून हो जाए तो तुम्हें इस सत्य को भी समय के साथ स्वीकार करना होगा, क्योंकि अब कान्हा के आने के बाद माता-पिता का जन्म हो चुका है और उन्हें भी बहुत संघर्ष और धैर्य वाली तपस्या करनी है। अब आगे की यात्रा में हम दोनों को एक दूसरे को समझने का ही प्रयास करना होगा, परखने का नहीं क्योंकि अब समय की कसौटी हमको अपनी जिम्मेदारियों की ओर ढकेल रही है।
            जैसे-जैसे समय का रथ आगे बढ़ेगा शारीरिक अस्वस्थता भी हम पर हावी होने लगेगी। यह सफर जो प्रेम और आकर्षण से प्रारम्भ हुआ था जिसमें साज-श्रंगार, हर्ष-उल्लास और भरपूर समय था अब वह अपनी आभा थोड़ी-थोड़ी कम करने लगेगा। अब वह प्रेम एक दूसरे की आँखों में बसे करुणा के भाव को समझने की ओर अग्रसर होगा। जैसे-जैसे ज़िम्मेदारी की बागडोर बढ़ती जाएगी शायद संवाद में कुछ कमी आने लगे। एक दूसरे के मन के अनुरूप क्रियाकलाप न हो, पर जीवन के रथ से मुस्कान का ईंधन कभी खत्म मत होने देना। भावी जीवन में हो सकता है रूठना और मनाना गौण हो जाए और उसकी जगह ज़िम्मेदारी और थकान ले ले, तब भी तुम्हें मुझे समझना होगा। बदलते समय में तुमको शरीर से ज्यादा मन की सुंदरता पर ध्यान देना है। तुम्हें कभी भी दूसरों की टीका-टिप्पणी से स्वयं को किसी भी सुंदरता के तराजू में नहीं तौलना है। अगर हम दोनों के जीवन में प्रेम महत्वपूर्ण है तो उसका कोई भी आंकलन नहीं है। प्रेम में तो सब कुछ देने वाली अभिव्यक्ति की प्रधानता होती है। मैं तभी धनवान रहूँगा जब तुम्हारे चेहरे पर स्वर्ण सी आभा, चाँदी सी मीठी मुस्कान और हीरे जैसी दृढ़ता समाहित होगी। उम्र बढ़ने पर अपने शौक मत खोना। थोड़ा-थोड़ा समय जरूर निकालना स्वयं से प्रेम का। भावी जीवन का एक सत्य हमेशा याद रखना की लोग तुम्हारे साथ तभी खड़े होगे जब तुम उनके अनुरूप होगी। तुम्हारी तारीफ तभी करेंगे जब उनके अनुरूप तुम्हारा व्यवहार होगा। तुम लोगों से नहीं हो लोग तुमसे है। बदलते परिवेश में तुम्हें अपने स्वास्थ्य की ओर जागरूक होना होगा। जमाने के पैमाने पर खुद को कभी मत तौलना, अपनी हँसी को कभी उपेक्षित मत होने देना, बढ़ते समय चक्र में आसान नहीं होगा खुद को सजाना-सँवारना, हजारो कामों से फुर्सत पा लेना, रिश्तों की बागवानी में प्रेम की अभिव्यक्ति के पल, पर कभी भी असंवाद की स्थिति मत आने देना। सच्चा प्रेम चेहरे से नहीं बल्कि प्यार करने वाले दिल से होता है। बढ़ती उम्र की यही महत्वपूर्ण एक सच्चाई है।
            हमारे रिश्ते की डोर भी समय के साथ घिसेगी, पर कई अनुभव और खट्टी-मीठी यादों के साथ ओर भी उजली और चमचमाएगी। यह संवाद केशव ने राधा से उसे भविष्य की परिस्थितियों से जूझने, सच्चाई को स्वीकार करने और उसे मुस्कान के साथ भावी जीवन की यात्रा को तय करने के लिए किया। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की वैवाहिक बंधन में समय के साथ कई सारे परिवर्तन आते रहते है। हमें जीवन की सच्चाई को गहराई से अनुभव करना होता है। हर स्थिति उतनी सहज और सरल नहीं होती जितनी वह हमेशा दिखाई देती है। इसलिए हमें अपनी मानसिक दृढ़ता को समय-समय पर बलवान करना जरूरी है। केशव का राधा को यह संवाद जो भावनात्मक मजबूती देने वाला था वह भी वैवाहिक वर्षगाँठ का एक अनूठा उपहार था।  
                                                                         डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)



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