जब फूट फूट कर रो पड़ी दस्यु सुन्दरी फूलन देवी
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर
जीवन में अनगिनत उतार-चढ़ाव देखने वाली फूलन देवी के एक मासूम लडक़ी से दस्यु सुंदरी बनने के किस्से आज भी चंबल के बीहड़ों में सुने और सुनाए जाते हैं। एक समय था जब दस्यु सुन्दरी फूलन देवी के नाम से आंचलिक सम्पन्न परिवार ही नहीं डाकू गिरोह भी दहशत खाते थे, साथ ही एक जाति विशेष के लोग भी उससे खौफ खते थे। फूलन देवी अपने कारनामों और उसके साथ हुई घटनाओं के कारण इतनी विश्रुत हो गई थी कि उसके ऊपर उसके जीवित रहते फिल्म भी बनी और चली भी। ग्वालियर केन्द्रीय जेल के वरिष्ठ अधिकारियों के निवेदन व अधिक आग्रह पर 21 फरवरी 1983 को आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज के ग्वालियर केन्द्रीय जेल में मंगल प्रवचन हुए। जेल में बंद कुख्यात एवं खूंख्वार 90 आत्म समर्पण करने वाले डाकू, दस्युसुंदरी फूलनदेवी और मलखान सिंह आदि के बीच ये प्रवचन आयोजित किये गये। एक विशाल नीम के पेड़ के नीचे मुनिराज का पाटा बिछाया गया। प्रवचन डाकू बाल्मीकि के प्रसंग से प्रारंभ हुये। बाल्मीकि डकैती और चोरी से परिवार का पोषण करते थे। इस पाप के कार्य में जब उनके परिवार के सदस्यों ने अपने को अलग बताया तब डाकू बाल्मीकि की आँखें खुल गयीं। वे संत बन गये और उन्होंने रामचरित मानस जैसे लोक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की। मुनिराज के प्रवचनों को सुनकर डाकूओं की आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी। पश्चाताप से अभिभूत सभी डाकुओं ने तीन बार हाथ उठाकर भविष्य में ऐसे जघन्य अपराध न करने की प्रतिज्ञा की। चार फुट दस इंच की छोटे से कद की फूलनदेवी भी वहीं थी। वे उठीं और मुनिराज के पैरों पर गिरकर फूट-फूट कर रो पड़ीं। रोते-रोते वे बोली मैंने तो आज तक एक चिडिय़ा भी नहीं मारी। उनके नाम पर डकैती और अपराध होते रहे। भविष्य में वे कभी भी ऐसे कार्य नहीं करेंगी। मुनिराज ने पिच्छी से उन्हें तीन बार आशीष दिया और कहा- जा! तेरा कल्याण हो। अपराध की दुनिया से निकल कर जब वे सांसद बनी तो महाराज के ‘‘जा! तेरा कल्याण हो’’ ये शब्द उसके कानों में गूंजते थे, जिनको वह आत्मीजनों के समक्ष दोहराती रहीं। यह घटना नैनागिरि की परिचय पुस्तिका हेतु श्रीमती राजकुमारी रांधेलिया, कटनी ने ‘‘आचार्य श्री देशभूषण जी की नैनागिरि यात्रा, 1983’’ के नाम से श्री सुरेश जैन आईएएस के पास भेजी थी, जो अब प्रकाशनाधीन है। आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज एवं चतुर्विध संघ को बुन्दलेखंड के सभी तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा कराने हेतु गठित स्वागत समिति के संयोजक श्री सिंघई देवकुमार जी रांधेलीय कटनी के साथ पंडित सुमेरू चंद्र दिवाकर, सिवनी, श्री सिंघई राजेन्द्र कुमार जी पनागर, डॉ. श्री भागचंद जी भागेन्दु, दमोह, सिंघई हुकुमचंद जी रांधेलीय, पाटन प्रमुख थे। दिल्ली से आचार्य श्री विहार कर ग्वालियर होते हुए छतरपुर जिलान्तर्गत जैन तीर्थ क्षेत्र नैनागिरि पहुँचे थे। 25 मार्च 1983 को संघ ने नैनागिरि क्षेत्र में प्रवेश किया। भव्य स्वागत समारोह के बीच अनेक डाकुओं ने भी आचार्य श्री के दर्शन किये। आसपास के क्षेत्रों से अपार जन समूह उमड़ पड़ा। उन्होंने कहा था कि बुंदेलखंड की जलवायु से मुझे आरोग्य प्राप्त हुआ है। भगवान पाश्र्वनाथ के दर्शन से मेरे नेत्रों की ज्योति बढ़ गई।