ग्लूकोमा छीन सकता है आपकी आँखों की रोशनी
सह.सम्पादक अतुल जैन की रिपोर्ट
शिवपुरी। ग्लूकोमा आँखों की एक ऐसी बीमारी है, जिसके निदान में देरी हुई तो नेत्र ज्योति हमेशा के लिए जा सकती है। इस बीमारी के प्रति लोगों को जनजागरूक किया जाना चाहिएं। क्या है ग्लूकोमा- ग्लूकोमा जिसे हम कंचिया बिंद या काला मोतिया भी कहते हैं, एक ऐसी बीमारी है जिसमें आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती है और पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है। समय रहते इसका निदान करने से उपचार द्वारा इस बीमारी से होने वाले अंधत्व को रोका जा सकता है। ग्लूकोमा के लक्षण- ओपन एंगल ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते है की लोग इन्हे नजरअंदाज कर देते है। यदि इन लक्षणों के दिखने पर लोग चिकित्सक के पास जा कर आँखों की जाँच कराएंगे तो आँखों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा में लाइट बल्ब के चारो तरफ रंगीन गोले दिखाई देते हैं। आंख में दर्द होता है, मितली आती है। मरीज की दृष्टि का क्षेत्र धीरे-धीरे कम होता जाता है। किस उम्र के लोगो को होता है ? ग्लूकोमा को काला मोतियाबिंद या सबल बाय या कांच बिन्द भी कहते है आमतौर पर ग्लूकोमा का खतरा 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है लेकिन कई बार परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास होने पर या किसी अन्य बीमारी के कारण कम उम्र में भी ग्लूकोमा हो सकता है। डायबिटीज, हाइपरटेंशन, मायोपिया ओर पहले से परिवार में ग्लूकोमा के मरीजों को उनके परिवारजनों को ग्लूकोमा की जांच समय समय पर कराते रहना चाहिए। कांच बिंद और मोतियाबिंद में अंतर- कांच बिंदु में आँख के अन्दर प्रेशर बढाता जाता है जिससे आँख की नस (दृष्टि तंत्रिका) हमेशा के लिए छतिग्रस्त होने लगती है, इसकी रिकव्हरी नही होती। मोतियाबिंद में भी धीरे-धीरे रोशनी कम होती है। लेकिन इसमें लेंस खराब होता है जिसे बदला जा सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कमजोर हो रही है तो चिकित्सक को दिखाए। क्यूंकि एक बार ग्लूकोमा पूरी तरह होने के बाद इसको ठीक करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन समय रहते यदि इसके लक्षण को पहचान लिया जाये तो मरीज को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है। उपचार- ग्लूकोमा का उपचार उसके प्रकार पर निर्भर करता है। ज्यादातर मरीजों में दवाइया प्रभावी रहती है, कुछ मरीजों को, लेजर या ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है।