नारगोल,गुजरात मे मनाया गया भव्य सहस्रार दिवस महोत्सव
ध्यान को पूर्णता देता है सहजयोग का सहस्रार जागृति अनुभव* परम पूज्य श्री माताजी प्रणित सहजयोग संस्था द्वारा गुजरात के नारगोल में भव्य तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सहस्रार दिवस महोत्सव संपन्न हुआ।जिसमें देश विदेश के साधकों सहजयोगियों ने बड़ी संख्या में प्रतिभागिता की।इस भव्य तीन दिवसीय आयोजन में ध्यान क़े सूक्ष्म बिन्दुओं पर सेमीनार परिचर्चा के साथ हवन पूजन एवं भक्ति संगीत के विविध कार्यक्रम रखे गए।उल्लेखनीय है कि नारगोल गुजरात में समुद्र के किनारे बसा वह स्थान है जहाँ परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी ने 5 मई 1970 को विश्व का सहस्रार चक्र खोल कर मानव जाति को महामानव होने की दिशा दिखाई।यह अनुभव हर उस व्यक्ति के लिए है जो मानव में बसे ईश्वर के सत्य स्वरूप को पाना चाहता है।*सहस्रार का क्या महत्व है*- *कुण्डलिनी जब सहस्रार में पहुँच जाती है तो आपका मानसिक , भावनात्मक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व भी इसी में विलय हो जाता है , तब आपकी कोई भी समस्या नहीं रहती।* मानव का शरीर एक लघु ब्रह्मांड की तरह होता है जिसमें अपार क्षमताएं व *” ….महामाया पृथ्वी माँ की तरह हैं, यह सभी कुछ मिलने पर आपको वास्तव में अत्यन्त प्रसन्न तथा आनन्दमय बना देती हैं। ताकि आप ‘निरानन्द’ केवल आनन्द का रसपान कर सकें । आनन्द के सिवाय कुछ भी नहीं यहीं सहस्रार है परन्तु यह तभी सम्भव है जब आपका ब्रह्मरंध्र खुल जाए। -परम पूज्य श्री माताजी*जब सहस्रार चक्र जागृत होता है व ब्रह्मरंध्र खुलता है तो हम संपूर्ण का अंग हो जाते हैं, अखंड हो जाते हैं और तब हम यथार्थ में आत्मा के सौंदर्य का आनंद प्राप्त कर पाते हैं । महामाया की माया से हम लोग मुक्त जाते हैं तथा उनका श्री आदिशक्ति के रूप में साक्षात् करते हैं तब भूत या भविष्य की कोई स्थिति नहीं रह जाती है हम वर्तमान में स्थापित हो जाते हैं, और वर्तमान में कोई विचार नहीं होता यही निर्विचारिता व निर्विकल्प समाधि का मार्ग है। भगवान बुद्ध ने इसे शून्य की स्थिति कहा है, श्री महावीर स्वामी ने इसे निर्वाण की स्थिति बताया है। वास्तव में श्री माताजी जी से पूर्व सहस्त्रार चक्र की इस प्रकार की व्याख्या देखने को नहीं मिलती है ना ही सहस्रार चक्र से आगे की स्थिति का वर्णन ही हमें प्राप्त होता है। श्री माताजी ने शून्य अथवा निर्वाण की स्थिति को मात्र शब्दों में ही वर्णित नहीं किया है अपितु लाखों सहजयोगियों को इसका जीवंत अनुभव प्रदान किया है। सहस्रार एक विश्वव्यापी क्षेत्र है जिसमें हम प्रवेश करते हैं। *कैसे पाएँ यह स्थिति-* यह सत्य है कि कुंडलिनी जागरण, सहस्त्रार की जागृति मानव को असीम आनंद, शक्तियां, सुख, शांति, स्वास्थ्य प्रदान करने वाली होती है। परंतु इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए आपको योग्य पात्र होना पड़ेगा, सत्य को पाने की शुद्ध इच्छा अपने भीतर जागृत करनी होगी। ईश्वर के साम्राज्य में बुद्धि की गणनाएं नहीं चलती हैं बल्कि अपने हृदय को प्रक्षेपित करना होता है। हृदय से किया हुआ समर्पण ही आपको सत-चित्त-आनंद में स्थापित कर सकता है।