शीर्ष कोर्ट ने कहा, हाई कोर्ट द्वारा जमानत के मामलों पर शीघ्र फैसला होना चाहिए


नई दिल्ली । देश की सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट द्वारा जमानत के मुद्दों पर शीघ्र सुनवाई नहीं करने के तौर-तरीकों पर असहमति जताते हुए कहा कि गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत या गिरफ्तारी के बाद जमानत की मांगने वाली याचिकाओं पर अदालतों द्वारा जल्द से जल्द फैसला किया जाना चाहिए, क्योंकि उनमें एक इंसान की आजादी का मुद्दा शामिल है।
एक खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को किसी भी तरह से जमानत की याचिका पर तेजी से फैसला करना चाहिए और याचिकाकर्ता को अनिश्चितता की स्थिति में धकेलने के लिए इसे बहुत ज्यादा समय तक लटका कर नहीं रखना चाहिए। गुजरात हाई कोर्ट द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर नोटिस जारी होने के छह हफ्ते बाद सुनवाई की तारीख मिलने पर उठ रहे सवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी सामने आई है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बी।वी। नागरत्ना की पीठ ने एक आरोपी को अंतरिम जमानत देने से इंकार करके मामले की सुनवाई के लिए आगे का समय तय करने के छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह एक असामान्य कदम है, जिसे हाईकोर्ट ने अपनाया था और कोर्ट इसे खारिज करती है।
पीठ ने कहा कि आमतौर पर यह अदालत जहां अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया जाता है, उस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। लेकिन इस अदालत के ध्यान में लाया गया यह कुछ अजीब तथ्य है कि आवेदक ने अग्रिम जमानत की मांग की, उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए अंतरिम राहत को खारिज कर दिया और मामले को सुनवाई के लिए आगे का समय दे दिया। यह एक असामान्य प्रथा है जो इस अदालत ने कभी नहीं देखी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस तरह की प्रथा को भी अस्वीकार करते हैं और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से न्यायिक नोट लेने का अनुरोध करते हैं। कम से कम जमानत के मामले में, चाहे वह गिरफ्तारी से पहले की जमानत हो या गिरफ्तारी के बाद की जमानत हो, उस पर शीघ्र अति शीघ्र फैसला किया जाना चाहिए।

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